कहा जाता है की घूमना सबसे बड़ी नियामत है । यात्रा अपने आप में एक उत्साह है और हर यात्रा आपकों अगली यात्रा के प्रेरणा देती है। दरअसल हर वो जगह जहां की हम यात्रा करते हैं हमें अगले लक्ष्य के लिए प्रेरित करती है। शायद मैं इसे जीवन के संघर्ष से भी जोड़ कर देखता हूँ।
“One’s destination is never a place, but a new way of seeing things.”- Henry Miller
सच्चाई यही है जैसा की हेनरी मिल्लर ने कहा है अगर आप एक नई जगह जाते है और उसकी खूबसूरती और विविधता को महसूस करते हैं तो आपके सोचने का तरीका ही बदल जाता है। असल में आप अपने वर्तमान चक्र से निकाल कर अगले चक्र में प्रवेश कर जाते हैं जो आपकी बुद्धिमता को और निखारता है।
और इस बार के यात्रा में रामेश्वरम शहर के श्रीरामलिंगेश्वर ज्योतिर्लिंग के शामिल होने से मैं अत्यंत उत्साहित था। रामेश्वरम सनातन धर्म के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है इसे चार धामों की यात्रा मानी जाती है। माँ पिताजी को चार धाम के दर्शन कराने का सपना था। और जबसे अमेरिका के साइन्स चैनल ने नासा के सेटेलाइट इमेजरी का उपयोग करते हुए एडम्स ब्रिज जो करोड़ों हिंदुओं के लिए राम सेतु है, राम सेतु ही साबित कर दिया। इस चैनल ने अन्य खोज से सिद्ध कर दिया की राम सेतु का निर्माण प्राकृतिक नहीं होकर मानव निर्मित है। राम सेतु और रामेश्वरम यात्रा की एक ही कड़ी है। धनुषकोडी जाने के लिए रामेश्वरम जाना पड़ता है। रामेश्वरम तमिलनाडू राज्य के रामनाथपुरम जिले मन्नार की खाड़ी में अवस्थित है । तो हम जयपुर से यात्रा प्रारम्भ कर मुंबई पहुंचे।
एक रात मुंबई में गुजार तथा दोस्तों से मिल के अगली सुबह हम मदुरै पहुंचे और टैक्सी से रामेश्वरम के लिए निकाल पड़े। मदुरै से रामेश्वरम का रास्ता करीब 170 किमी का है जो शहर की हदों से निकालने के बाद बहुत ही खूबसूरत है । रास्ते में एकाध जगह चाय वाय के बाद हम सीधे पिरप्पन नाम की एक जगह में रुके जहां सड़क से विशाल समुद्र के दर्शन हो रहे थे। हम उत्तर भारतीय लोग भी काफी अधीर टाइप के हुआ करते हैं मनाली पहुँचने के पहले ही बरफ देख के उछलने लगते हैं या फोटो वोटो खींचने लगते हैं या फिर छोटी मोटी खाड़ी वाड़ी देख के समंदर समझ लेते हैं । लेकिन नहीं वहाँ से कुछ कदम पर ही नीला विशाल समुद्र बाहें फैलाये हमें बुला रहा था। दृश्य वाकई बहुत प्यारा था। और ऐसा महसूस होना “Live the moments” की भावना को प्रबल करता है।
थोड़ी देर यहाँ गुजरने के बाद हम आगे चले और कुछ 18 किमी चलते ही हमें पाम्बन ब्रिज दिखा। पाम्बन ब्रिज असल में 1914 में बना रेल्वे ब्रिज था। यह ब्रिज हिंदुस्तान का पहला समुद्री पुल था जो सबसे लंबा पुल भी था जब तक की बांद्रा वर्ली सी लिंक आस्तित्व में नहीं आया था। यह पुल एक आम पुल नहीं था बल्कि डबल लीफ़ बेसकुल ब्रिज था जो गुजरने वाले जहाजों के लिए खोल दिया जाता था।
1988 तक सर्फ़ेस ट्रांसपोर्ट के यही एक जरिया था जो की तमिलनाडू को द्वीप शहर रामेश्वरम से जोड़ता था।
1988 में इसके साथ साथ एक रोड पुल का भी निर्माण हुआ जो की NH49 को रामेश्वरम शहर से शेष तमिलनाडू को जोड़ता है। खैर हम शाम को रामेश्वरम पहुंचे और मदुरै से खरीदी धोती तथा सफ़ेद शर्ट पहन कर रामेश्वरम मंदिर के दर्शन करने निकले। सुनहरे बार्डर वाले सफ़ेद धोती व सफ़ेद शर्ट वाले दक्षिण भारतीय वेशभूषा में मुझे काफी अच्छा महसूस हो रहा था। रामेश्वरम हिंदुओं का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है जो की अत्यंत पवित्र माना जाता है और यह चार धाम की यात्राओं में एक माना जाता है । यहाँ स्थापित शिवलिंग बारह द्वादश ज्योर्लिंगों में से एक है। भगवान राम ने रावण का वध कर्ण के पश्चात प्रायश्चित करने का निर्णय लिया क्योंकि वह नरहत्या होने के साथ साथ एक ब्राहमन राजा की भी हत्या थी। इसके लिए उन्होने यहाँ तपस्या करने का निर्णय लिया तथा हनुमान जी को हिमालय से शिवलिंग लाने को कहा। मान्यता है की रामेश्वरम में स्थित शिवलिंग वही शिवलिंग है।
एक अजीब सा एहसास मन में था की हमारे आराध्य राम के द्वारा स्थापित और पूजित शिवलिंग के दर्शन होंगे।
मंदिर पहुँच कर हमें लगा की हम एक अलग संसार में ही प्रवेश कर गए। लगभग 15 एकड़ में फैले बड़ी बड़ी दीवारें के अंदर बुलंद गोपुरम और विशालकाय नंदी एक अलग ही दृश्य था । पूर्व में स्थित राजगोपुरम करीब 130 फीट ऊंचा है जो करीब नौ लेवेल का है। रामेश्वरम मंदिर में एक लंबा गलियारा है जो की करीब चार हजार फीट लंबा है और वो चार हज़ार खुदाई की हुई अतुलनीय शिल्प कलाकारी वाले खंभों के ऊपर टिका हुआ है। हरेक खंभा एक चबूतरे पर बना है और ग्रेनाइट निर्मित है। ऐसे माना जाता है की ये ग्रेनाइट रामेश्वरम के पत्थरों से नहीं अपितु तमिलनाडू के अन्य क्षेत्रों से समुद्र मार्ग से लाये हुए पत्थरों से निर्मित है। आश्चर्य। ऐसा भी माना जाता है की बारहवीं शताब्दी से पूर्व यह तीर्थस्थल घासफूस से बनी झोपड़ी में था परंतु श्रीलंका के राजा पराक्रम बाहु के द्वारा पहला चिनाई की हुई संरचना खड़ी की गयी। इसके पश्चात रामनाथपुरम के सेतुपति राजाओं ने मंदिर की शेष संरचना को पूरा किया। इस मंदिर को कई राजवंशों जैसे त्रावणकोर,रामनाथपुरम, मैसूर तथा पुड्डुकोटई का संरक्षण प्राप्त है।
हमने काफी अच्छी तरह से द्रविडियन वास्तुकला को निहारा और महादेव बाबा की अर्चना की। फिर बाहर निकलकर पूछा किसी से की समंदर किधर है। सुनते ही तीन चार लोगों ने रास्ता बता दिया और महज चार सौ मीटर की दूरी पर गर्जना करते समुद्रदेवता ने हमें खींच लिया अपनी ओर । एक बात और देखने को मिली केरल के तीर्थयात्री वहाँ बहुतायत में थे। लंबे समय तक एक कम्यूनिस्ट सरकार के शासन के बावजूद लोगों में सनातन धर्म से जुड़ाव था । खैर हम समुद्र देवता के दर्शन कर होटल की तरफ चल पड़े। कार्तिक हमारा ड्राईवर था और उसे मैंने बोला की रात को मुझे फोटोग्राफी के लिए जाना है जिसका उसने मुझे कुछ जवाब दिया मतलब हिन्दी और इंग्लिश उसे नहीं आती थी और मुझे तमिल आने का इलै इलै छोड़ के कुछ आता ही नहीं था। वो not allowed और पुलिस जैसा कुछ बोल रहा था। लेकिन मैंने उसे आने को कहा । फिर हमने खाना खाया और मैंने माँ पिताजी को सोने को बोला और कार्तिक को फोन कर बुलाया । उसने मुझे मंदिर के पास उतारा और चला गया भुनभुनाते हुए। मजे की बात ये है की मुझे उसी जगह एक कार्तिक और मिला जिसे मैंने बताया की मैं रात को कुछ अच्छे फोटो लेने आया हूँ तो उसने बोला भाई चिंता मत करो मैं तुमको सब जगह ले के चलूँगा। वो कार्तिक एक होटल कमिशन एजेंट था जो तीर्थयात्रियों को होटेल दिला कुछ कमिशन कमाता था जिसमे उसे पूरी रात तीर्थयात्रियों का इंतज़ार करना पड़ता था। वह मुझे रामेश्वरम दिखने को स्वत: तैयार हो गया। एक बात मैंने अपने जीवन में फिर से देखा की जिसके पास धन कम उसके पास दिल बड़ा।
धन α 1/ दिल
रात भर वो अपनी मोटरसाइकल पर हमको घुमाता रहा बिना किसी स्वार्थ के और उसे मेरे फोटोग्राफी के लिए सब सहन किया । सबसे पहले वह मुझे समंदर के पास ले गया जहां मैं उन मछली पकड़ने वाली हरे रंग की नौकाओं की फोटो लेना चाह रहा था जो मुझे दिन के नीले समंदर में दिखी थी । ट्राइपोड़ तथा रिमोट शटर से लिए गए फोटो बता रहे थे की हमें परेशान मत करो हम दिन भर काम कर के अभी सो रहें हैं ।
इसके बाद मैंने मुख्य मंदिर का रुख किया । रात के करीब एक बज चुके थे और चहल पहल कम हो चुकी थी । हिंदुस्तान के मंदिरों और तीर्थ स्थलों का इस कदर व्यवसायिकरण हो चुका है की मंदिरों की मूल संरचना दुकानों, बिजली के खंभों और अन्य वैध या अवैध निर्माणों की वजह से दिखनी बंद हो गयी है। मंदिर प्रशासन, स्थानीय नेता और अन्य की मिलीभगत से ये सब संभव होता है । अक्सर इस तरह की चीजें लोगों को धर्म से विमुख भी करती है। अब रात के दो बजे भी मेरा कैमरा गोपुरम की साफ तस्वीर नहीं ले पा रहा था जिसका कारण एक बड़े बिजली के खंभे से आती रोशनी थी तथा बंद दुकानों के बाहर लगे बल्ब से आती रोशनी थी। अब ISO कम करें तो अंधेरा हो जाए और ISO कम रखते हुए रिमोट से एक्सपोजर ज्यादा रखें तो एलईडी बल्ब मुस्कराती हुए चिढ़ाए की भैया हम तो हिंदुस्तानी हैं जो करना है कर लो हम तो हमारी धरोहरों की खूबसूरती ऐसे ही बर्बाद करेंगे । बड़ी दुविधा थी। फिर भी और पचास मीटर की दूरी पर ट्राइपोड़ तथा सारे गजेट सेट किए और राजगोपुरम का फोटो लिया।खैर एक फोटो के बाद दूसरे द्वारों की तरफ चल पड़े। वहाँ भी कमोबेश यही हालत थी पर कुछ कोशिशें रंग लाई।
उसके बाद हमने दूसरे द्वारों का रुख किया और कुछ फोटो उनके खींचे पर पता नहीं वो कैसे आए अब समय भी कम था तो कार्तिक ने मुझे होटल छोड़ दिया । रात के करीब तीन बज चुके थे। इसके बावजूद मैंने वहाँ रिसेप्शन पर बोला कि मुझे छत पर जाना है पर उन्होने नियमों का हवाला देते हुए मना कर दिया। मैंने खूब निवेदन किया तब उनके एक स्टाफ ने कहा आपको छत पर जाने की क्या ज़रूरत है आप पाँचवे माले पर पर बड़ी सी खिड़की है वहाँ से देखो । मैं राजी हो गया और वहाँ जा कर ट्राइपॉड सेट किया और केमरे में रिमोट लगाया। ISO सेट कर कुछ फोटो मंदिर के लिए ।
हालांकि खंभे की रोशनी वहाँ भी विघ्न पैदा कर रही थी पर हम भी बैंकर हैं बिना चैलेंज के तो दिन ही पूरा नहीं होता। वैसे पांचवे माले से मंदिर का नजारा बहुत प्यारा लग रहा था । और हम कमरे में जा कर सो गए अगली सुबह चौबीस कुंड के स्नान के लिए। सुबह चार बजे उठ कर मैंने पिताजी की उठाया कि चलिये कुंड स्नान के लिए तो उन्होने बोला तुम जाओ । मैं नहा धो कर निकला रामेशवरम मंदिर के लिए । सुबह चार बजे ही मंदिर के बाहर भीड़ जमा थीं कुंड स्नान के लिए।
श्री रामेश्वरम मंदिर परिसर में ही चौबीस कुओं का निर्माण कराया गया था था जो मीठे जल के हैं और ये पीने लायक भी हैं। बल्कि मंदिर के बाहर बने कई कुएं ऐसे हैं जिनका पानी खारा है।परिसर में स्थित कुओं के बारे में मान्यता है की इन कुओं का निर्माण भगवान श्रीराम ने अपने अमोघ वाण से किया था और उन्होने अनेक तीर्थों का जल मंगा कर उन कुओं में भरा था। जिनके कारण वह कुएं तीर्थ के नाम से जाने जाते हैं।
उतनी भीड़ में समझ में नहीं आ रहा था की मैं कहाँ जाऊँ क्या करूँ ? एक दो दलाल किस्म के लोग वहाँ खड़े थे उन्होने मुझसे पूछा की स्नान करना है क्या ? मैंने बोला हा। मजा तो तब आया की जब कोई तेरह सौ तो कोई पच्चीस सौ बोलने लगे। मैंने कहा नहीं करना है स्नान। यात्रा का मूलमंत्र है-“देखो –समझो -करो “
इस को ध्यान में रखते हुए मैं सबकुछ देखने लगा। थोड़ी देर में मुझे पता चला की एक गेट है जिससे लोगों को, वहाँ के लोग शायद पंडे होंगे, थोड़ी थोड़ी संख्या में अंदर भेज रहे हैं। मैं गेट के सामने खड़ा हो गया। एक पंडे की नजर पड़ी मुझपर और उसने मुझसे पूछा क्या चाहिए ? मैंने बोला कुंड स्नान करना है तब उसने मुझे अंदर एक तरफ खड़ा कर दिया । दसेक मिनट के बाद वो लाइन अंदर जाने लगी जिसमे मैं भी शामिल हो गया । फिर क्या था अंदर एक चालीस रुपये का टिकिट ले कर दर्शनार्थियों की पंक्ति में शामिल होकर आगे बढ़ता गया ।
“Tavel is never a matter of money but of courage”- Paolo Cohelo
अंदर का नज़ारा ऐसा था की मंदिर के स्वयंसेवक कुंडों के ऊपर रस्सी और बाल्टी लेकर खड़े थे और गुजरते तीर्थयात्रियों की पंक्ति के ऊपर बाल्टी से जल उड़ेलते जाते थे और लोग अगले कुंड के लिए आगे बढ़ जाते थे। स्कन्द पुराण में वर्णित कुंडो के नाम थे मंगल तीर्थम, सीता कुंडम, लक्ष्मी तीर्थम, शिवा तीर्थम इत्यादि। एक कुंड का नाम था पाप विनाश तीर्थम जिसके पास एक लिखा था की भगवान श्रीकृष्ण को कंसवध के पाप से मुक्ति पाने के लिए इस कुंड में स्नान करना पड़ा था। मिथक हो या न हो मुझे अपने जड़ों पर गर्व महसूस हुआ।
स्नान के बाद मैं बाहर निकला और समंदर किनारे पहुँचा। सूर्योदय का समय हो रहा था और दृश्य बहुत सुंदर था।
इस तरह से मेरी रामेश्वरम की यात्रा सम्पन्न हुई और मैं कई सुंदर स्मृतियों को सहेजे धनुषकोडी के लिए निकाल पड़ा।
“The goal is to die with memories not dreams.”- Anonymous
